Allah Is The Best Planner Of All Affairs In Hindi & Roman Urdu
अल्लाह सबसे अच्छा योजनाकार/ मंसूबासाज़ (Planner) है
अक्सर हमारे ज़िन्दगी में, हम एक ऐसे मोड़ पर फंस जाते हैं जहां हम अपनी किसमत पर सवाल उठाते हैं, मैं ही क्यों? जवाब हमेशा अल्लाह की हिकमत में छिपा होता है। जो चीज़ें हमारी पसंद के हिसाब से नहीं हो रही हैं, उनकी मंसूबाबंदी सबसे बेहतर मंसूबासाज़ अल्लाह पाक ने एहतियात और मोहब्बत से की है
हमारा ईमान इस बात पर निर्भर है कि हम अल्लाह और उसकी मंसूबाबंदियों पर कितना भरोसा करते हैं। रुकावटों को क़ुबूल करना, उन्हें मजबूत तवाक्कुल के साथ पार करना और उसकी मर्ज़ी के सामने अपना सिर झुकाना ही हमें ईमान की ऊंचाइयों तक ले जाता है। उस पर पूरा यक़ीन रखने से भी हमारा दिल शांत और मुतमइन होगा।
हर मख्लूक़ (जानदार) की ज़िन्दगी अल्लाह और उस के कामिल मंसूबों पर निर्भर है। उसकी इजाज़त के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इसी तरह, इंसान की ज़िन्दगी अल्लाह पाक की तरफ से पूरी तरह से मंसूबाबंद है। हर फैसला जो वह सोचता है कि वह कर रहा है, अल्लाह ने पहले ही लिख दिया है और हर आज़माइश, खुशी, ग़म उसी से है क्योंकि वह सबसे अच्छा फैसला लेने वाला है। वह मंसूबा बनाता है जो हमारे लिए बेहतर है, भले ही हम न समझें।
अल्लाह सबसे अच्छा योजनाकार/ मंसूबासाज़ (Planner) है इस बात को इन पॉइंट्स में समझ सकते है :
1. कुरान की आयतों से:
Aksar hamari zindagi me mein, Ham ek aise mod par phans jaate hain jahaan ham apani kismat par savaal uthaate hain, main hee kyon? javaab hamesha Allaah ke hiqmat mein chhipa hota hai. Jo chizein hamari pasand se nahin ho rahee hain, unki mansubabandi sabse behtar mansubasaaz Allah Pak ne ehtiyat aur mohabbat se ki hai.
Hamara Iman is baat par nirbhar hai ki ham Allah aur uski mansubabandiyon par kitana bharosa karate hain. Rukawaton ko Qubool karana, unhen majboot tawakkul ke saath paar karana aur uski marzi ke saamane apana sir jhukana hi hame Iman ki oonchaiyon tak le jaata hai. Us par poora yaqeen rakhane se bhi hmara dil shant aur mutmain hoga.
1. Quran Ki Aayton Se:
"Woh waqt bhi yaad karne ke qabil hai jabke munkireen e haqq tere khilaf tadbeerein soch rahey thay ke tujhey qaid kardein ya qatal kar dalein ya jila-watan (drive you away) kardein. Woh apni chaalein chal rahey thay aur Allah apni chaal chal raha tha. Aur Allah sab se behtar chaal chalne wala hai." [Quran 8:30]
Meri apse guzarish hai ki Allah ka qarb hasil karne ke liye aap in aayaton ko rozmarrah ki zindagi ka hissa banaye.
"Ho sakta hai ke ek cheez tumhein na-gawar ho aur wahi tumhare liye behtar ho aur ho sakta hai ke ek cheez tumhein pasand ho aur wahi tumhare liye buri ho." [Quran 2:216]
Moosa ne kaha, “ Hargiz nahin mere saath mera Rubb hai, woh zaroor meri rehnumayi farmayega.” [Quran 26: 62]
4. Twakkul Ko Hasil Karne Ke Marahil (Steps):
c. Sabr Karna:
"Accha sabr karunga aur bakhubi karunga. Jo baat tum bana rahey ho uspar Allah hi se madad maangi jaa sakti hai.” [Quran 12:18]
"Kya tum nahin jaante ke aasman o zameen ki har cheez Allah ke ilam mein hai? Sab kuch ek kitaab mein darj hai. Allah keliye yeh kuch bhi mushkil nahin hai." [Quran 22:70]
حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
"Mere liye Allah bas karta hai (kafi hai/suffices me), koi mabood nahin magar woh, usi par maine bharosa kiya aur woh maalik hai arsh e azeem ka." [Quran 9:129]
"Aur apna maamla main Allah ke supurd karta hoon, woh apne bandon ka nigehbaan hai." [Quran 40:44]
हमारा ईमान इस बात पर निर्भर है कि हम अल्लाह और उसकी मंसूबाबंदियों पर कितना भरोसा करते हैं। रुकावटों को क़ुबूल करना, उन्हें मजबूत तवाक्कुल के साथ पार करना और उसकी मर्ज़ी के सामने अपना सिर झुकाना ही हमें ईमान की ऊंचाइयों तक ले जाता है। उस पर पूरा यक़ीन रखने से भी हमारा दिल शांत और मुतमइन होगा।
हर मख्लूक़ (जानदार) की ज़िन्दगी अल्लाह और उस के कामिल मंसूबों पर निर्भर है। उसकी इजाज़त के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इसी तरह, इंसान की ज़िन्दगी अल्लाह पाक की तरफ से पूरी तरह से मंसूबाबंद है। हर फैसला जो वह सोचता है कि वह कर रहा है, अल्लाह ने पहले ही लिख दिया है और हर आज़माइश, खुशी, ग़म उसी से है क्योंकि वह सबसे अच्छा फैसला लेने वाला है। वह मंसूबा बनाता है जो हमारे लिए बेहतर है, भले ही हम न समझें।
अल्लाह सबसे अच्छा योजनाकार/ मंसूबासाज़ (Planner) है इस बात को इन पॉइंट्स में समझ सकते है :
1. कुरान की आयतों से:
कुरान साफ़ तौर पर इन आयतों में बताता है कि अल्लाह सबसे अच्छा मंसूबाकार है उसके सिवा कोई भी इस लायक नहीं के उससे बेहतर तरतीब बना सके, बेशक सारी तारीफें सिर्फ उसी के लिए हैं
a. सूरह अल इमरान की आयत:
इस सूरह में अल्लाह हमें बता रहा है कि जब काफिरों ने हज़रत ईसा (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) के खिलाफ उन्हें सूली पर चढ़ाने की योजना बनाई, तो अल्लाह ने उन्हें ज़मीन से जन्नत में उठाया और कहा कि चीजें उनकी योजनाओं के अनुसार होती हैं और वह सभी का सबसे अच्छा योजनाकार है।
"और वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह बेहतर तोड़ करनेवाला है।" [क़ुरान 3:54]
b. अल्लाह के मसूबों को क़ुबूल करना
क़ुबूलियत अल्लाह पाक पर अपने ईमान को मजबूत करने का तरीका है। उसके मंसूबों पर अमल करना और उन्हें खुले दिल से क़ुबूल करना तवक्कुल हासिल करने का एक और कदम है। यह अपने आप को यह समझने के लिए है कि उसके फैसलों के पीछे हमेशा हिकमत होती है जिसे हम नहीं देखते हैं, लेकिन जब अल्लाह हुकुम देगा तो यह सुलझ जाएगा। और यह उन योजनाओं के लिए एक बेहतर मुतबदील होगा जो आपके नक्शसाज़ी और योजनाओं के मुताबिक़ नहीं जाती हैं। क़ुबूलियत भी आपके दिल को इससे मुत्मइन करती है जो आपको अल मुती ने दिया है।
"हमको अल्लाह तआला काफी है,और बेहतरीन कारसाज़ (काम बनाने वाले और काम सँवारने वाले) है।" [क़ुरान 3:173]
c. सब्र करना
सब्र आखरी मरहला है जो किसी के तवक्कुल को पूरा करता है। इसका मतलब है जब कोई आफत आती है या आपकी ज़िन्दगी आइने के बिखरे हुए टुकड़ो की तरह महसूस होती है तो सब्र करना। यह तभी आता है जब किसी के पास अल्लाह और उसके मसूबों में तवक्कुल होता है। जब याकूब (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) को यूसुफ (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) की मौत की झूठी खबर के बारे में पता चला, तो उन्होंने अल्लाह से सबरून जमील, खूबसूरत सब्र के लिए कहा। उनका सब्र और अल्लाह के क़द्र को क़ुबूल करना तवक्कुल की बेहतरीन मिसाल है।
"अब सब्र से काम लेना ही बेहतर है! जो बात तुम बता रहे हो उसमें अल्लाह ही मददगार हो सकता है।" [क़ुरान 12:18]
इस सूरह में अल्लाह हमें बता रहा है कि जब काफिरों ने हज़रत ईसा (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) के खिलाफ उन्हें सूली पर चढ़ाने की योजना बनाई, तो अल्लाह ने उन्हें ज़मीन से जन्नत में उठाया और कहा कि चीजें उनकी योजनाओं के अनुसार होती हैं और वह सभी का सबसे अच्छा योजनाकार है।
"और वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह बेहतर तोड़ करनेवाला है।" [क़ुरान 3:54]
सूरह अंफाल की अयाह 30 भी अल्लाह पाक की योजनाओं और फैसलों को अहमियत दे रही है क्योंकि उसने हमें उस समय के बारे में बताया था जब कुरैश ने प्यारे पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) को क़तल करने साज़िशें की थी, लेकिन अल्लाह के पास उसके लिए और ही मंसूबा था। पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) अल्लाह पाक की मदद से काफिरों के सर से बच गए और उनका मंसूबा ख़ाक में मिल गया।
"और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब कुफ्फ़ार तुम से फरेब कर रहे थे ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे वह तो ये तदबीर (चालाकी) कर रहे थे और ख़ुदा भी (उनके ख़िलाफ) तदबीरकर रहा था।" [क़ुरान 8:30]
मेरी आपसे गुज़ारिश है कि अल्लाह का क़र्ब हासिल करने के लिए आप इन आयतों को रोज़मर्राह की ज़िन्दगी का मामूल बनाये।
2. अल्लाह के मंसूबों का पता लगाना:
"और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब कुफ्फ़ार तुम से फरेब कर रहे थे ताकि तुमको क़ैद कर लें या तुमको मार डाले तुम्हें (घर से) निकाल बाहर करे वह तो ये तदबीर (चालाकी) कर रहे थे और ख़ुदा भी (उनके ख़िलाफ) तदबीरकर रहा था।" [क़ुरान 8:30]
मेरी आपसे गुज़ारिश है कि अल्लाह का क़र्ब हासिल करने के लिए आप इन आयतों को रोज़मर्राह की ज़िन्दगी का मामूल बनाये।
2. अल्लाह के मंसूबों का पता लगाना:
हमारी ज़िन्दगी के जो फैसले अल्लाह पाक लेता है वो काबिले तारीफ है लेकिन जो वो हमारे लिए करता है ये कैसे पता किया जाये ये सबसे अहम् सवाल है। जब हम किसी चीज़ की मंसूबाबंदी करते हैं और ये हमारी ख्वाइशात के मुताबिक नहीं होता, तो हम उम्मीद खो देते हैं और अपनी क़िसमत पर सवालिया निशान लगा देते हैं। लेकिन हमें मायूस नहीं होना चाहिए क्यूंकि एक बेहतर मुतबादिल है जो हमारे लिए वो रास्ता बनाएगा जो हमारे हक़ में हर तरह से सही होगा, कुछ वक़्त के लिए हमें लगेगा ये सही नहीं है पर कुछ वक़्त बीतने के बाद हमें एहसास होगा के जो हुआ वो हक़ीक़तन हमारे हक़ में हुआ। अगर हम अल्लाह की हिदायत और फैसलों पर अमल करते हैं तो हम उसकी बेहतर योजनाओं की खोज करने के रास्ते पर हैं जो हमारी अपनी गलतियों से कहीं बेहतर हैं।
"और हो सकता है कि तुम किसी शेय (चीज या काम) को पसंद ना करो और वोह तुम्हारे लिए बेहतर हो, और हो सकता है कि तुम किसी चीज को अच्छा समझो हालांकि वोह तुम्हे नुकसान पहुंचाने वाली हो।" [क़ुरान 2:216]
"और हो सकता है कि तुम किसी शेय (चीज या काम) को पसंद ना करो और वोह तुम्हारे लिए बेहतर हो, और हो सकता है कि तुम किसी चीज को अच्छा समझो हालांकि वोह तुम्हे नुकसान पहुंचाने वाली हो।" [क़ुरान 2:216]
अल्लाह की योजनाओं के बारे में बात करते समय, तवक्कुल वह एहसास है जो इसके साथ आता है। तवक्कुल करने वाले इंसान को अल्लाह की योजनाओं पर पूरा भरोसा है, भले ही वे आपको मुश्किल लगें। रास्ते में रुकावटें होंगी, आज़माइश आपके ईमान को हिलाने की कोशिश करेंगी, लेकिन तवाक्कुल और उस पर ईमान के साथ भरोसा करना हमें टूटने से रोकेगा। जब हज़रत इब्राहिम (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) को उनकी क़ौम के लोगों ने आग में फेंक दिया था, तो उनके तवक्कुल ने ही उन्हें भड़कती हुई आग से बचाया था। तवाक्कुल और अल्लाह पर भरोसा ही मुश्किलात और फ़िटनोसे बाहर निकलने का वाहिद रास्ता है।
"उसने (मूसा ने) कहा, "हरगिज़ नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह ज़रूर मुझे रास्ता दिखायेगा।" [क़ुरान 26: 62]
"उसने (मूसा ने) कहा, "हरगिज़ नहीं, मेरे साथ मेरा रब है। वह ज़रूर मुझे रास्ता दिखायेगा।" [क़ुरान 26: 62]
तवक्कुल मिनटों या सेकंडों में हासिल नहीं होता है, इसके लिए अल्लाह की योजनाओं के पूरी लगन और उन पर साबित क़दम रहने की ज़रुरत होती है। यह अल्लाह और उसकी अज़मत पर ईमान रखने और यह महसूस करने के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है कि वह अल-वकील है, जो मामलों का सबसे अच्छा निपटान है, और उसकी योजनाओं को खुले दिल और पुरे यक़ीन के साथ स्वीकार करता है। सब्र तवक्कुल की आखरी ज़रुरत है जो अल्लाह पर भरोसा करने का रास्ता आसान और सुगम बनाता है।
a. अल्लाह की अज़मत का एहसास
पहला कदम जो तवक्कुल की नींव रखता है वह है अल्लाह की महानता पर ईमान और यह महसूस करना कि वह वही है जो आसमानो और ज़मीन का रब है। तख्त सिर्फ उसी का है और हमें केवल उसकी इबादत करनी चाहिए। जब हमारी योजनाओं को उसकी योजनाओं से बदल दिया जाता है, तो हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि यह सबसे बुद्धिमान और अल-वकील द्वारा लिखा गया था, जो हमारा रब है और हमें कभी अंधेरे में नहीं छोड़ता है।
a. अल्लाह की अज़मत का एहसास
पहला कदम जो तवक्कुल की नींव रखता है वह है अल्लाह की महानता पर ईमान और यह महसूस करना कि वह वही है जो आसमानो और ज़मीन का रब है। तख्त सिर्फ उसी का है और हमें केवल उसकी इबादत करनी चाहिए। जब हमारी योजनाओं को उसकी योजनाओं से बदल दिया जाता है, तो हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि यह सबसे बुद्धिमान और अल-वकील द्वारा लिखा गया था, जो हमारा रब है और हमें कभी अंधेरे में नहीं छोड़ता है।
"(वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ" [क़ुरान 73:9]
b. अल्लाह के मसूबों को क़ुबूल करना
क़ुबूलियत अल्लाह पाक पर अपने ईमान को मजबूत करने का तरीका है। उसके मंसूबों पर अमल करना और उन्हें खुले दिल से क़ुबूल करना तवक्कुल हासिल करने का एक और कदम है। यह अपने आप को यह समझने के लिए है कि उसके फैसलों के पीछे हमेशा हिकमत होती है जिसे हम नहीं देखते हैं, लेकिन जब अल्लाह हुकुम देगा तो यह सुलझ जाएगा। और यह उन योजनाओं के लिए एक बेहतर मुतबदील होगा जो आपके नक्शसाज़ी और योजनाओं के मुताबिक़ नहीं जाती हैं। क़ुबूलियत भी आपके दिल को इससे मुत्मइन करती है जो आपको अल मुती ने दिया है।
"हमको अल्लाह तआला काफी है,और बेहतरीन कारसाज़ (काम बनाने वाले और काम सँवारने वाले) है।" [क़ुरान 3:173]
c. सब्र करना
सब्र आखरी मरहला है जो किसी के तवक्कुल को पूरा करता है। इसका मतलब है जब कोई आफत आती है या आपकी ज़िन्दगी आइने के बिखरे हुए टुकड़ो की तरह महसूस होती है तो सब्र करना। यह तभी आता है जब किसी के पास अल्लाह और उसके मसूबों में तवक्कुल होता है। जब याकूब (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) को यूसुफ (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) की मौत की झूठी खबर के बारे में पता चला, तो उन्होंने अल्लाह से सबरून जमील, खूबसूरत सब्र के लिए कहा। उनका सब्र और अल्लाह के क़द्र को क़ुबूल करना तवक्कुल की बेहतरीन मिसाल है।
"अब सब्र से काम लेना ही बेहतर है! जो बात तुम बता रहे हो उसमें अल्लाह ही मददगार हो सकता है।" [क़ुरान 12:18]
"यह तक़दीर नहीं है, यह तक़दीर नहीं है, यह अल्लाह का कामिल मंसूबा है"
हम हमेशा हिसाब किताब करते हैं, पॉइंट्स लिखते हैं, अपने हफ़्ते भर की खूबसूरत योजना बनाते हैं। लेकिन क्या होता है? जैसा हमने योजना बनाई थी वैसा कुछ नहीं निकलता है। लेकिन उनकी योजना उस परफेक्ट प्लानर द्वारा बनाई गई है जो सबसे बुद्धिमान है। वह जानता है कि आगे क्या होगा, केवल वही जानता है कि हमें कौन सी चीजें दी जानी चाहिए और हमारी ज़िन्दगी का नक्सा कैसा बनाया जायेगा। उसकी योजनाएँ कभी भी गलत नहीं होतीं, वे मापी जाती हैं और परिपूर्ण होती हैं और हमारे लिए इतमिनान लाती हैं।
"क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अल्लाह जानता है जो कुछ आसमान और ज़मीन मैं हैं? निश्चय ही वह (लोगों का कर्म) एक किताब में अंकित है। निस्संदेह वह (फ़ैसला करना) अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है।" [क़ुरान 22:70]
6. अल्लाह के मंसूबों पर भरोसा करने की दुआ:
हम हमेशा हिसाब किताब करते हैं, पॉइंट्स लिखते हैं, अपने हफ़्ते भर की खूबसूरत योजना बनाते हैं। लेकिन क्या होता है? जैसा हमने योजना बनाई थी वैसा कुछ नहीं निकलता है। लेकिन उनकी योजना उस परफेक्ट प्लानर द्वारा बनाई गई है जो सबसे बुद्धिमान है। वह जानता है कि आगे क्या होगा, केवल वही जानता है कि हमें कौन सी चीजें दी जानी चाहिए और हमारी ज़िन्दगी का नक्सा कैसा बनाया जायेगा। उसकी योजनाएँ कभी भी गलत नहीं होतीं, वे मापी जाती हैं और परिपूर्ण होती हैं और हमारे लिए इतमिनान लाती हैं।
"क्या तुम्हें नहीं मालूम कि अल्लाह जानता है जो कुछ आसमान और ज़मीन मैं हैं? निश्चय ही वह (लोगों का कर्म) एक किताब में अंकित है। निस्संदेह वह (फ़ैसला करना) अल्लाह के लिए अत्यन्त सरल है।" [क़ुरान 22:70]
6. अल्लाह के मंसूबों पर भरोसा करने की दुआ:
अल्लाह हमारे गले की नसों से ज्यादा हमारे करीब है। हम हमेशा दुआ करके उसे बुला सकते हैं। जब भी हम अपनी योजनाओं में बदलाव या बदले जाने पर उदास और परेशानी महसूस करते हैं, तो हमें कभी भी अल्लाह की रस्सी नहीं छोड़नी चाहिए। इसके बजाय, हमें पकड़ मजबूत करनी चाहिए और सबसे भरोसेमंद हमारे रब अल्लाह पर भरोसा करना चाहिए। हम अपनी चिंता को शांत करने के लिए निम्नलिखित दुआओं को पढ़ सकते हैं।
حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
"मेरे लिए ख़ुदा काफी है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मैने उस पर भरोसा रखा है वही अर्श (ऐसे) बुर्जूग (मख़लूका का) मालिक है।" [क़ुरान 9:129]
فَسَتَذْكُرُونَ مَآ أَقُولُ لَكُمْ ۚ وَأُفَوِّضُ أَمْرِىٓ إِلَى ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ بَصِيرٌۢ بِٱلْعِبَادِ
"तो जो मैं तुमसे कहता हूँ अनक़रीब ही उसे याद करोगे और मैं तो अपना काम ख़ुदा ही को सौंपे देता हूँ कुछ शक नहीं की ख़ुदा बन्दों ( के हाल ) को ख़ूब देख रहा है" [क़ुरान 40:44]
Allah Sabse Achcha Mansubakaar (Planner) Hai (In Roman Urdu)
Aksar hamari zindagi me mein, Ham ek aise mod par phans jaate hain jahaan ham apani kismat par savaal uthaate hain, main hee kyon? javaab hamesha Allaah ke hiqmat mein chhipa hota hai. Jo chizein hamari pasand se nahin ho rahee hain, unki mansubabandi sabse behtar mansubasaaz Allah Pak ne ehtiyat aur mohabbat se ki hai.
Hamara Iman is baat par nirbhar hai ki ham Allah aur uski mansubabandiyon par kitana bharosa karate hain. Rukawaton ko Qubool karana, unhen majboot tawakkul ke saath paar karana aur uski marzi ke saamane apana sir jhukana hi hame Iman ki oonchaiyon tak le jaata hai. Us par poora yaqeen rakhane se bhi hmara dil shant aur mutmain hoga.
Har makhlooq (jaandar) ki zindagi Allah aur uske kamil mansubon par nirbhar hai. Uski ijazat ke bina ek patta bhi nahi hil sakta. Isi tarha, Insan ki zindagi Allah pak ki taraf se puri tarha mansubaband hai. Har kaam jo wo sochta hai ke wo kar raha hai, Allah ne pehle hi likh diya hai aur har aazmaish, khushi, gham usi se hai kyunki wah sabse achcha faisla lene wala hai. Wah mansuba banata hai jo hamare liye behtar hai, bhale hi ham na samjhe.
Allah sabse achcha mansubakaar (Planner) hai is baat ko in points se samajh sakte hain.
Quran saaf taur par in aayaton me batata hai ki Allah sabse achcha mansubakaar hai, Uske siwa koi bhi is layak nahi ke usse behtar tarteeb bana sake. Beshaq saari taarifein sirf usi ke liye hain.
a. Surah Al-Imran Ki Aayat:
Is surah me Allah hame bata raha hai ki jab kuffaron ne hazrat Isa (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ke khilaf unhe suli par chadhane ka mansuba banaya to, Allah ne unhe zameen se Jannat me utha liya aur kaha ki chizein unke mansubon ke hisab se hoti hai aur wah sabse achacha mansubakaar hai.
"Aur wo chaal chale to Allah ne bhi uska tod kiya aur Allah behtar tod karne wala hai." [Quran 3:54]
b. Surah Anfaal Ki Aayat:
Suarah Anfaal ki Ayah 30 bhi Allah pak ke mansubon aur faislon ko ahmiyat de rahi hai kyunki unsne is aayat me hame us waqt ke baare me bataya hai jab Quraish ne Nabi-e-Kareem (ﷺ) ko qatal karne ki sazish ki thi, lekin Allah ke pass unke liye dusra mansuba tayyar tha. Nabi-e-Kareem (ﷺ) Allah pak ki madad se kaafiron ke sar se bach gaye aur unka mansuba khaak me mil gaya.
"Woh waqt bhi yaad karne ke qabil hai jabke munkireen e haqq tere khilaf tadbeerein soch rahey thay ke tujhey qaid kardein ya qatal kar dalein ya jila-watan (drive you away) kardein. Woh apni chaalein chal rahey thay aur Allah apni chaal chal raha tha. Aur Allah sab se behtar chaal chalne wala hai." [Quran 8:30]
Meri apse guzarish hai ki Allah ka qarb hasil karne ke liye aap in aayaton ko rozmarrah ki zindagi ka hissa banaye.
2. Allah Ke Mansubon Ka Pata Lagana:
Hamari zindagi ke jo faisle Allah pak leta hai wo kabil-e-tareef hain, lekin jo wo hamare liye karta hai wo kaise pata lagaya jaye ye sabse aham sawal hai. Jab ham kisi cheez ki mansubabandi karte hain aur aur wo hamari khwaishat ke mutabiq nahi hoti to ham ummid kho dete hain aur apni qismat par sawaliya nishan laga dete hain. Lekin dar haqeeqat hame mayoos nahi hona chahiye kyunki Allah pak ek behtareen mutbadil hai, wo hamare liye wo rasta banata hain jo har surat e haal hamare liye behtar hota hai. Kuch waqt ke liye hame lagta hai ye hmare liye sahi nahi hai, par kuch waqt guzarne ke baad hame ahsas hone lagta hai ke jo hua wo hamare haq me behtar nahi behtareen tha. Agar ham Allah pak ki hidayat aur faislon par amal karte hain to ham uske behtareen mansubon ka pata lagane ki raah par hain jo hamari apni galtiyon se kahin behtar hai.
"Ho sakta hai ke ek cheez tumhein na-gawar ho aur wahi tumhare liye behtar ho aur ho sakta hai ke ek cheez tumhein pasand ho aur wahi tumhare liye buri ho." [Quran 2:216]
3. Allah Ke Mansubon Me Tawakkul Karna:
Allah ke mansubon ke baare me baat karte waqt tawakkul aur ahsas ye do chizein hain jo hamare imaan ko pukhta banati hain. Tawakkul karne wale insan ko Allah pak ke har faisle aur mansube par pura yaqeen hota hai. Raaste me rukawatein hongi, aazmaishein aapke imaan ko hilane koi bharpur koshish karengi, lekin Tawakkulke aur imaan ke sath Allah ke mansubon par bharosa karna hame tootne se rokega. Jab Hazrat Ibrahim (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ko unki qaum ke logon ne aag me phenk diya tha tab unke tawakkul ne hi unhe bhadakti aag se bachaya tha. Tawakkul aur Allah par bharosa hi tamam mushkilat aur fitno se bahar nikalne ka wahid rasta hai.
Twakkul pal bhar me hasil nahi hota. iske liye Allah ke faislon me puri lagan aur un par sabit qadam rehna padta hai. Twakkul Allah aur uski azmat par imaan rakhne aur yah mehsoos karne ke zariyah hasil kiya ja sakta hai ki woh "Al waqeel" hai, jo har maumle ko behtareen dhang se nibtata hai, Uske faislon ko khule dil aur pure yaqqen ke sath apnata hai. Sabr Twakkul ki akhiri zaroorat hai jo Allah par bharosa karne ka rasta aasan aur suhawna banata hai.
a. Allah Ki Azmat Ka Ahsas:
Pehla qadam jo Twakkul ki neew rakhta hai wah hai Allah ki zaat aur uske ek hone par yaqeen aur ye mehsoos karna ke wo wahi hai jo aasmano aur zameeno ka rab hai. Takht sirf usi ka hai aur hame sirf usi ki ibadat karni chahiye. Jab hamare faislon ko uske faislon me badal diya jata hai to hame khud ko yaad dilate rehna chahiye ki jo bhi ho raha hai wah sabse aklmand aur "Al Wakeel" ki taraf se hai jo hamara rab hai aur hame kabhi andhere me nahi chodega.
"Wo mashrik (east) o magrib (west) ka maalik hai, uske siwa koi khuda nahin hai, lihaza usi ko apna wakeel bana lo." [Quran 73:9]
"Wo mashrik (east) o magrib (west) ka maalik hai, uske siwa koi khuda nahin hai, lihaza usi ko apna wakeel bana lo." [Quran 73:9]
b. Allah Ke Mansubon Ko Qubool Karna:
Qubooliyat Allah par apne imaan ko mazboot karne ka ek tariqa hai. Uske mansubon par amal karna aur unhe khule dil se qubool karna Tawkkul hasil karne ka ek aur qadam hai. Yah apne aap ko yeh samjhane ke liye hai ki uske faislon ke piche hamesha hiqmat hoti hai jise ham nahi dekh sakte, lekin jab Allah huqam dega to yah sulajh jayega. Qubooliyat bhi apne dil ko isse mutmain karti hai ke Allah jo karta hai hamare haq me karta hai. Jahan qubooliyat nahi hoti waha imaan na hota ya imaan kamzor hota hai. Wo "Al Muti" hai jo deta hai wahi haq me hota hai.
"Hamare liye Allah kafi hai aur wahi behtareen kaarsaaz hai." [Quran 3:173]
c. Sabr Karna:
Sabr Tawakkul ka akhri marahil hai jo kisike Tawakkul ko pura karta hai. Iska matlb hai jab koi aafat aati hai ya aapki zindagi aayine ke tukdon ki tarha bikhti hui nazar aati hai to sabr karein. Yah tabhi aata hai jab kisi ke pass Allah aur uske mansubon me tawakkul hota hai. Jab Hazrat Yaqub (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ko Hazrat Yusuf (عَلَيْهِ ٱلسَّلَامُ) ki maut ki jhuthi khabar mili to unhon ne Allah se "Sabrun Jameel" (Khubsurat Sabr) manga. Unke Sabr aur Allah ke Qadr ko qubool karna ka behtareen misaal hai.
"Accha sabr karunga aur bakhubi karunga. Jo baat tum bana rahey ho uspar Allah hi se madad maangi jaa sakti hai.” [Quran 12:18]
5. Allah Ka Mansuba Kamil Hai:
"Yah Taqdeer nahi hai, Yah Taqdeer nahi hai, Yah Allah ka kamil mansuba hai."
Ham hamesha hisab kitab karte hai, points likhte hain, apne hafte bhar ka mansuba banate hain. Lekin kya hota hai? Jaisa ham chahte hai wesa kuch nahi hota. Lekin unka mansuba us perfect planner ne banai hai jo sabse aala hai. Wah janta hai ki aage kya hoga, sirf wahi janta hai ki hame kon si chizen di jani chahiye aur hamari zindagi ka naksha kaisa banaya jaye. Uske mansube kabhi bhi galat nahi hote, wo dekhi jaye to puri tarha mukammal hoti hai aur hamare liye itminan lati hain.
Ham hamesha hisab kitab karte hai, points likhte hain, apne hafte bhar ka mansuba banate hain. Lekin kya hota hai? Jaisa ham chahte hai wesa kuch nahi hota. Lekin unka mansuba us perfect planner ne banai hai jo sabse aala hai. Wah janta hai ki aage kya hoga, sirf wahi janta hai ki hame kon si chizen di jani chahiye aur hamari zindagi ka naksha kaisa banaya jaye. Uske mansube kabhi bhi galat nahi hote, wo dekhi jaye to puri tarha mukammal hoti hai aur hamare liye itminan lati hain.
"Kya tum nahin jaante ke aasman o zameen ki har cheez Allah ke ilam mein hai? Sab kuch ek kitaab mein darj hai. Allah keliye yeh kuch bhi mushkil nahin hai." [Quran 22:70]
6. Allah Ke Mansubon Par Yaqeen Karne Ki Dua:
Allah hamare gale ki naso se zyadah hamare kareeb hain. Ham hamesha dua ke zariyah use apna haal suna sakte hai. Jab bhi ham apne mansubon me badlaw ya badle jane ki wajah se mayus hote hai to hame Allah ki rassi nahi chhodni chahiye. Iske bajaaye hame pakad aur mazboot kar leni chahiye aur sabse bharosemand mand dost Allah par aitmad rakhna chahiye. Dukh aur mayusi ki ghadi me hame in duaon ko padhna chahiye:
حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
فَسَتَذْكُرُونَ مَآ أَقُولُ لَكُمْ ۚ وَأُفَوِّضُ أَمْرِىٓ إِلَى ٱللَّهِ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ بَصِيرٌۢ بِٱلْعِبَادِ
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